एक दृष्टि :- गायत्री-गो सेवा-साधना संस्थान (योग एवं पारंपरिक चिकित्सा शोध केन्द्र)

प्रस्तावना :-

               अखिल विश्व गायत्री परिवार मुख्यालय एवं युगतीर्थ-गायत्री तीर्थ शान्तिकुंज हरिद्वार द्वारा चलाये जा रहे रचनात्मक आन्दोलन-अभियान के अंतर्गत संचालित गो-सेवा, गौवंश-संरक्षण एवं सवंर्धन तथा स्वावलम्बन प्रधान गो आधारित गो-उत्पादों साथ ही राष्ट्र की समर्थता-सशक्तता एवं भारतीय संस्कृति के आधारभूत मूल प्रतीक-प्रतिमान-गौ, गंगा, गुरु, गीता एवं गायत्री को जन-मन में स्थापित करने के लिए गायत्री परिवार रचनात्मक ट्रस्ट के माध्यम से विश्वमानवता हित अनथक प्रयास पुरुषार्थ किया जा रहा है।

               उपरोक्त जितने भी सामयिक आन्दोलन हैं, उन्हें केन्द्र शान्तिकुंज द्वारा भारतवर्ष के समस्त भू-भाग से लेकर विदेश तक की धरती में सफलता एवं कुशलतापूर्वक संचालन की महत् योजना है। यह भारतीय संस्कृति के उन्नयन हेतु एक विशिष्ट पुरुषार्थ के रूप में है, जिसे आज के परिप्रेक्ष्य में जानना समझना और अमल में लाना न केवल समय की माँग है, वरन् युग की पुकार भी है।

               मानव जीवन में गौ की महत्ता, माँ गंगा की उपादेयता, सामथ्र्यवान गुरुसत्ता का अमोघ गुरुज्ञान साथ ही प्रत्यक्ष-परोक्ष दिव्य संरक्षण, अनासक्त कर्मयोग का प्रतिपाद्य विषय-श्रीमद् भगवद्गीता का दिव्य सन्देश एवं आद्यशक्ति-पराशक्ति-वेदमाता, देवमाता, विश्ववंद्य माँ गायत्री की उपासना सर्वविदित है। अखिल विश्व गायत्री परिवार अपनी रचनात्मकता के लिए इसी रूप में विश्व प्रसिद्ध है। विज्ञान के इस युग में भी रचनात्मक क्रान्तियों की उतनी ही आवश्यकता एवं उपादेयता है जितनी कि विज्ञान द्वारा मानव के सुख-सुविधाओं के लिए भी निरन्तर प्रयास पुरुषार्थ किया जा रहा है। अध्यात्म जगत के अन्वेषक इस सत्य-तथ्य पर अवस्थित हैं कि मानव विकास के चाहे जितने भी साधन जुटाए जाएं, जब तक विज्ञान का अध्यात्म के साथ समन्वय नहीं होगा, मानव का विकास अधुरा ही रहेगा। समग्र विकास तभी संभव है जब इनका समन्वय होगा। तब वही विज्ञान का स्वरूप अध्यात्म-विज्ञान के रूप में उभरेगा। रचनात्मकता के माध्यम से यही परिस्थितियाँ विनिर्मित करने का उत्कृष्ट प्रयास-पुरुषार्थ युग निर्माण मिशन द्वारा किया जाना इस युग की माँग की आपूर्ति होगी। इसी दिशा में गायत्री परिवार रचनात्मक ट्रस्ट का गठन अपनी तरह की रचनात्मकता है।

               इस कड़ी में गायत्री परिवार रचत्मक ट्रस्ट बैसपाली-रायगढ़, छ.ग. भी मिशन के उद्देश्यों की आपूर्ति में गिलहरी-सी छोटी भूमिका निभाने के लिए पूर्णत: संकल्पित है साथ ही प्रतिबद्ध भी। मिशन का उद्देश्य मनुष्य में देवत्व का उदय एवं धरती पर स्वर्ग का अवतरण केन्द्रित है और व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र से लेकर नये युग का नूतन निर्माण ही एकमात्र लक्ष्य है। यही इस संस्थान का भी लक्ष्य है अलग कुछ भी हटकर नहीं, भले ही भौगोलिक परिस्थतियाँ निश्चित ही अनुकूल-प्रतिकूल हो सकती हैं पर मिशन का एक मात्र लक्ष्य ही मूल में केन्द्रित है। अत: सामयिक सप्त आन्दोलनों को एक जगह गति प्रदान करना इस संस्थान का प्रमुख उद्देश्य है।

               युग निर्माण योजना मिशन के आदर्श सूत्र-सिद्धान्तों के व्यावहारिक मूत्र्तता का क्षेत्र युग निर्माण की इकाई व्यक्ति से आरंभ होकर एक नये युग के निर्माण तक का विस्तृत क्षेत्र है। इसमें सभी गाँवों से लेकर शहरों तक रहवासी आ जाते हैं। शहरों का विकास आधुनिकीकरण के साथ-साथ जिस तरह से होता चला जा रहा है अब आवश्यकता है शहरों के मोटापे को कम करने के साथ ही गाँवों के रूप में दूबलेपन को दूर करने की। गाँव में पर्याप्त जमीन होती है इसी के साथ जहाँ जमीन है, वहीं कृषि संभव है और जहाँ कृषि है, उसकी टिकाऊ एवं उन्नत कृषि के लिए पशुधन के रूप में गौ एवं जैविक खाद हेतु गोबर-गोमूत्र की आवश्यकता जो गाँव में अथवा गौशाला में ही संभव है। इसी के साथ गोउत्पाद एवं लघु कुटीर उद्योगों का चलन भी गाँव में सहजता एवं प्रमुखता से संभव है। अत: इस दृष्टि से गाँव ही रचनात्मक कार्यों के लिए उपयुक्त क्षेत्र हैं।

               इस प्रकार गायत्री परिवार रचनात्मक ट्रस्ट, बैसपाली-रायगढ़, छ.ग. का गायत्री-गो सेवा-साधना योग एवं पारंपरिक चिकित्सा शोध-केन्द्र का मिशन केन्द्रित एक ही उद्देश्य एवं लक्ष्य है। इसी की आपूर्ति को यह संस्थान भी समर्पित है। यह संस्थान अभी शैशवकाल से गुजर रहा है और जैसे-जैसे इसका विकास-विस्तार होता चला जायेगा, अपने समय पर इसका मूत्र्त स्वरूप उभर कर आयेगा। यह संस्थान बहुउद्देश्यों से अभिप्रेरित है अर्थात् अतीत की प्रेरणा, वर्तमान की भाव संवेदना एवं उज्ज्वल भविष्य की सुखद-संकल्पना पर आधारित है।

जन-जन की सहभागिता अर्थात् समयदान एवं अंशदान से पोषित-संचालित की योजना-

               यह संस्थान जन-जन के सहयोग-सहकार एवं समयदान-अंशदान से पोषण-संचालन की योजना है। इसमें गायत्री परिवार के अलावा भी समाज के हर वर्ग से आह्वान है कि उज्ज्वल भविष्य की संकल्पनाओं एवं सतयुग की वापसी हेतु सभी के सम्मिलित प्रयास-पुरुषार्थ से रचनात्मक ट्रस्ट द्वारा कुशलतापूर्वक संचालन की महत् योजना है। इस संस्थान में समय-समय पर सभी तरह के शिविरों का संचालन होगा। विभिन्न शिविरों-योग, आयुर्वेद, समस्त नेचरोपैथी चिकित्सा के ओपीडी भी संचालित होंगे। इनके विशेषज्ञों द्वारा नि:शुल्क कैम्प आयोजित होंगे। इस प्रकार परंपरागत चिकित्सा शोध-केन्द्र के रूप में इसके विकास-विस्तार एवं स्वरूप प्रदान करने की दूरदर्शी संकल्पनाएँ हैं।

               यहाँ सभी तरह की प्रतिभाएँ अपनी सेवाएँ प्रदान कर सकते हैं। सबके अनुभव, ज्ञान एवं सम्मिलित प्रयास से यह संस्थान एक आदर्श मॉडल के रूप में उभरे और न केवल क्षेत्रीय वरन् प्रांतीय स्तर से लेकर राष्ट्रीय -अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक की पहचान का स्वरूप उभर सके, ऐसी बड़ी योजना,संकल्पना का लक्ष्य है जो गुरुसत्ता की असीम अनुकम्पा एवं मातृ संस्थान केन्द्र शान्तिकुंज के प्रत्यक्ष मार्गदर्शन साथ ही अखिल विश्व गायत्री परिवार प्रमुख परम श्रद्धेय डॉ प्रणव पण्ड्या एवं शैलबाला पण्ड्या साथ ही देसंविवि के माननीय प्रति कुलपति महोदय युवाओं के आदर्श डॉ. चिन्मय पण्ड्या जी के प्रत्यक्ष मार्गदर्शन में यह संस्थान मिशन के विविध उद्देश्यों की आपूर्ति की दिशा में निरंतर प्रयासरत है। गिलहरी-सी एक छोटी भूमिका निभाने में एक दिन यह संस्थान अवश्य कामयाब होगा, यह आशा ही नहीं परिपूर्ण विश्वास भी है।

               मिशन का उद्देश्य ही संस्थान का महत् उद्देश्य है जिसे रचनात्मकता के माध्यम से मूत्र्तता प्रदान करना एकमात्र ध्येय-लक्ष्य है। इसमें सभी तरह की प्रतिभाओं का सादर आमंत्रण है। छ.ग. प्रान्त धान का कटोरा कहलाता है इस दृष्टि से उन्नत एवं टिकाऊ तथा वैज्ञानिक कृषि उत्पाद भी एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है। इसका शिक्षण-प्रशिक्षण भी वैज्ञानिक तरीके से हो, इसका प्रयोग-परीक्षण भी यहाँ से संचालित होगा। इस वैज्ञानिक युग में जैविक कृषि को बढ़ावा देना तथा जन-जन के मन में इसे स्थापित करना एक महान् उद्देश्य की दूरदर्शी संकल्पना अभिप्रेरित है। यह कार्य निश्चित ही अपने समय पर ही होगा और मूत्र्त रूप लेगा इसमें कोई दो राय नहीं, कोई संशय नहीं। जैसे-जैसे सहयोग-समर्थन प्राप्त होता जायेगा मिशन का यह कारवा भी उसी आधार पर बढ़ता, विकसित होता चला जायेगा।

               उपरोक्त महत् उद्देश्यों की आपूर्ति के लिए हमारे पास वर्तमान में पर्याप्त जमीन है साथ ही भविष्य के विकसित रूप हेतु भी पर्याप्त संभावना है और आगे भी बरकार रहने की पूरी उम्मीद रहेगी। इसके विकास-विस्तार के लिए पूरी तरह से योजनाबद्ध तरीके से नेक बढ़ाते जा रहे हैं। परोक्ष गुरुसत्ता की प्रेरणा से यह अभिप्रेरित है अत: वह समर्थ सत्ता आगे भी सतत प्रेरणा के रूप में मार्गदर्शन करती रहेगी, यही नहीं गुरसत्ता का परोक्ष शक्ति-संबल भी प्राप्त होता चला जायेगा इसमें भी कोई संशय नहीं।

               वर्तमान का लक्ष्य आगामी वर्ष 3 से 6 फरवरी 2023 माघी पूर्णिमा को 108 कुण्डीय यज्ञ के माध्यम से इस हेतु जन जागृति के साथ आवश्यक निर्माणों हेतु शिलान्यास-भूमि पूजन समारोह आयोजित है। इस यज्ञायोजन को सफल-सार्थक बनाने के लिए इसमें सभी तरह की प्रतिभाओं का भावभरा आमंत्रण-अनुरोध है। साथ ही इस पुनीत उद्देश्य में बढ़-चढक़र सहभागिता सुनियोजन की विनम्र प्रार्थना-निवेदन भी है।

               समय-समय पर आवश्यक सूचनाएँ इस वेब साइट के माध्यम से वेब पाठकों एवं मिशन के प्राणवान कार्यकत्र्ताओं तथा जन-सामान्य से लेकर प्रबुद्ध तक संस्थान की वर्तमान एवं भावी योजनाओं से बराबर अवगत हो सकेंगे। सहभागिता के सूत्र-समयदान-अंशदान एवं प्रतिभादान के रूप में एक अंश विराट भगवान के निमित्त निरंतर लगाने, पुण्यलाभ प्राप्त करने, जीवन सफल-सार्थक करने का भावभरा निवेदन है। समयदान के रूप में 1 घण्टा प्रतिदिन एवं अंशदान मु_ी फण्ड के रूप में अपनी कमाई का एक अंश साथ ही प्रतिभादान के रूप में अपनी योग्यता-पात्रता एवं क्षमता का भी एक अंश समाज रूपी विराट् भगवान के लिए नियोजित करने की विनती है।

               इस तरह इक्कीसवीं सदी-उज्ज्वल भविष्य के लिए गौ सेवा-गायत्री साधना एवं योग तथा परंपरागत चिकित्सादि के माध्यम से स्वस्थ शरीर, स्वच्छ मन एवं सभ्य समाज के नूतन निर्माण के लिए इस युग की मांग है प्रतिभा परिष्कार एवं समय की मांग है परिष्कृ त प्रतिभा का यथेष्ट सुनियोजन के माध्यम से सतयुगी की वापसी-सतयुगी संभावनाओं को साकार करने के सामूहिक प्रयास एवं संगठन के रूप में उभार मनुष्य के सम्पूर्ण समस्याओं का निदान है, इस युग की आवश्यकताओं की आपूॢत है। जिसके लिए युग निर्माण मिशन का उद्भव हुआ है मनुष्य में देवत्व का उदय एवं धरती पर स्वर्ग अवतरण के लक्ष्य को लेकर।    अत: हम रहें या न रहें पर मिशन रहे, के भाव से युग शक्ति गायत्री एवं यज्ञ रूप सत्कर्म से मानव जीवन लक्ष्य एवं पूर्णता को प्राप्त हो यही परोक्ष सत्ता से जगत् कल्याण के लिए संस्थान द्वारा हार्दिक मंगल कामना-प्रार्थना है।

               गो-सेवा एवं गायत्री साधना के माध्यम से जन-जन में इसकी महत्ता-उपादेयता और अनिवार्य आवश्यकता हेतु गाँव-गाँव से लेकर घर-घर तक यह आन्दोलन जन-मन में स्थापित करने की विशाल योजना है। इसी के साथ इस संस्थान में शोध स्तरीय योग एवं पारंपरिक चिकित्साकल्प का संचालन होगा। इसी तरह अपने समय पर विभिन्न रचनात्मक आन्दोलनों को अपनी तरह से भौगोलिक एवं क्षेत्रीय आधार पर गति प्रदान करने का एक टकसाल है जो समयसाध्य-श्रमसाध्य प्रक्रिया है। कालांतर में यह मूत्र्त रूप लेगा जिसका प्रत्यक्ष लाभ गाँवों के ग्रामीण जनता को ग्रामतीर्थ योजना-ग्राम स्वराज्य के रूप में मिल सकेगा।

योग एवं पारंपरिक चिकित्सा शोध केन्द्र :-

               योग एक जीवनशैली का नाम है, जीवन दृष्टि का नाम है साथ ही इसका स्थूल रूप अष्टांग योग के रूप में महर्षि पतंजलिकृत योगसूत्रों को जीवन व्यवहार में आचरण कर शरीरगत-मनोगत आधि-व्याधि के निवारण के लिए योगा इन डेली लाइफ के तहत योगविधा जीवन का एक अभिन्न अंग बने, इस दृष्टि से इस दिशा में अखिल विश्व गायत्री परिवार अपने प्रज्ञायोग के माध्यम से जीवनशैली एवं जीवन दृष्टिकोण में आमूल परिवर्तन लाने को संकल्पित-प्रतिबद्धित है।

               दूसरी तरह पारंपरिक चिकित्सा के अंतर्गत परम्परगत चिकित्सकीय उपचार पद्धति जो पुरातन एवं अधुनातन का विकसित व्यावहरिक स्वरूप का उत्कृष्ट प्रयास होगा। जिसमें असाध्य रोगों तक की परंपरागत चिकित्सा के माध्यम से रोगों के उपाय-उपचार का क्रम संचालन होगा। उसमें अपेक्षित परिणामों के डाटा का संचयन होगा जिसे आगे चलकर शोध विषय के रूप में इस पर स्वतंत्र शोध कार्य संचालित होंगे। अनुसंधानजनित प्रमाणित डाटा जो आधनिक चिकित्सा पैथी से हटकर होंगे, मनुष्यता के सर्वांगपूर्ण उपचार में किस हद तक उसकी अहम् भूमिका होगी, यह एक अध्ययन का स्वतंत्र विषय होगा।

गो-सेवा एवं गायत्री साधना का अन्योन्याश्रित संबंध :-

               गायत्री साधना एवं गो सेवा का अन्योन्याश्रित संबंध स्वयं परम पूज्य गुरुदेव के जीवनक्रम में समाहित था। गौ को भारतीय संस्कृति में माता की संज्ञा-उपमा दी गई है। यही नहीं भारतीय इतिहास के पन्ने भरे पड़ें है इसकी महत्ता से। गाय के गोबर एवं गोमूत्र के औषधीय गुणों से लेकर व्यावहारिक दैन्दिन जीवन में अर्थतंत्र की सक्षमता में अहम् भूमिका है। साथ ही धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष में न्यायोपार्जित अर्थोपार्जन की भूमिका मानव जीवन में किस तरह अहम् रहती है, यह भी एक अध्ययन का स्वतंत्र विषय है। इस प्रकार ऋषि एवं कृषि संस्कृति को अपनाकर मानव के सर्वांगपूर्ण कायाकल्प का विधान दूरदर्शी ऋषियों के चिंतन में किस तरह समाहित थी और आज भी उसकी सम-सामयिकता साथ ही भविष्य में भी उसकी उपादेयता अनिवार्यता की सुनिश्चितता का प्रतिपादन इस संस्थान के उद्देश्यों में से एक है।

               इस तरह अखिल विश्व गायत्री परिवार द्वार संचालित रचनात्मक आन्दोलनों के विकेन्द्रीकरण से लक्षित गायत्री परिवार ट्रस्ट आधारित साथ ही मातृ संस्था से सम्बद्ध होकर गायत्री परिवार ट्रस्ट आधारित रचनात्मकताएँ मातृ संस्था के आदर्शों के आधार पर संचालित होने की प्रेरणा से प्रेरित है। इसी के आधार पर ग्रामतीर्थ एवं ग्राम स्वराज्य की परिकल्पना साकार परिलक्षित होगी। सतयुग की वापसी के ये सारे सरंजाम ऋषियुग्म गुरुसत्ता के दिव्य एवं प्रखर चिंतन की मूर्तता का प्रतीक-प्रतिरूप होगा, जिसे मानवता आत्मसातकर निहाल हो सके, जीवन धन्य बना सके, सफल-सार्थक कर सके, मिशन द्वारा विकेन्द्रीकरण का एक अनुपम प्रयास पुरषार्थ है। इसकी दूरगामी परिणति आशातीत होगी।

               यह सामाजिक व्यवस्था से संचालित होगा। गुरुदेव के कथनानुसार पूँजी पर समाज का नियंत्रण होगा समाज की सामाजिक संपत्ति समाज के ही हित निमित्त लेगेगी। इसके सुव्यवस्था संचालन पूज्य गुरुदेव के सुझाए अमोघ सूत्र समयदान-अंशदान की पुण्य परम्परा से ही संचालन की समुचित व्यवस्था रहेगी। इसी आधार पर ही इसकी भवितव्यता भी सुनिश्चित है। साथ ही समूह मन का सामूहिक प्रयास-पुरुषार्थ एक अपनी तरह का उदाहरण होगा, जो अनूठा होगा। स्वावलम्बन शिक्षण प्रधान एवं स्वावलम्बी जीवन प्रधान सामाजिक व्यवस्था का कृषिजनित समस्त कार्यों का सुसंचालन ग्रामीण परिवेश में भौगोलिकता के आधार पर गठित होगी।

               कृषि के क्षेत्र में भूमि का बंजरपन रासानिक खाद की देन है। अगर यही स्थिति बनी रहेगी तो वह दिन दूर नहीं कि विकास की गति अवरुद्ध होगी साथ ही उल्टे विनाश की ओर गमन होगा यह भवितव्यता एवं आधुनिक विकासजनित रिएक्शन मानव के ऊपर किस तरह पड़ेगा। इन सभी से सावधानी पूर्वक बचते बचाते हुए जनशक्ति के सामथ्र्य को सुनियोजित दिशा प्रदान करना एक महान् योजना है।

               कृषितंत्र का आधार मूलत: गोवंश एवं गौशालाएँ ही हैं। ऋषि निर्देशों एवं सूत्रों के आधार पर जीवन व्यवहार में आचरित किये जाने पर शतप्रतिशत सफलता सुनिश्चित है। अधिक उत्पाद विकास एवं उपभोक्तवाद के आधार पर वर्तमान में समस्याएँ अपनी तरह की खड़ी हो गई हैं, जिनका समाधान ढूँढना भी अत्यावश्यक हो गया है। समाधान एक ही है चिर परंपरागत विरासतों की साज-सँभाल अर्थात् दिव्य द्रष्टा के दिव्य ज्ञान से निसृत धाराओं-विधाओं को पुरातन एवं अधुनातन के संयुक्त परिवर्ति स्वरूप प्रदानकर बहुविकल्पीय प्रयोजन में ज्ञान-विज्ञान सम्पदा का नियोजन किया जाय।

               इसी आधार पर समर्थ एवं सशक्त राष्ट्र का नूतन निर्माण होगा। इस सुनिश्चित भवितव्यता के प्रति जागरुकता एवं बुद्धिमत्ता साथ ही विवेकशीलता के आधार पर यथा हरसंभव विज्ञान के इस युग में भी उन मूल्यों की पुर्नप्रतिष्ठापना आज की समस्याओं का न केवल समाधान है, वरन् मानव सभ्यता के विकास का परिशोधित उच्चतम मानदण्ड भी कहलायेगा।

               आज के वैज्ञानिक युग मे नि:संदेह कृषि विकास-अनुसंधान से लेकर उद्योग-धंधों का महत् कार्य एक सीमा तक उसकी उपादेयता पाथेय है, लेकिन जहाँ छोटे अध्यव्यवसायों की बात आती है, इसके खत्म होने से समस्याएँ सुलझेंगी नहीं, वरन् उलझते ही जायेंगी। मनुष्य चाहे जितना भी आधुनिक एवं वैज्ञानिक विकास के सापानों को पार कर जाये, वस्तुत: जहाँ जीवनकला एवं जीवन में सर्वांगपूर्णता की बात आयेगी वहाँ उसकी अपनी मौलिकता का रूप अपनी जगह सदा-सर्वदा अटल रहेगी। उदारहरणार्थ विकास के नाम पर मनुष्य आज कितना भी सभ्य प्रतीत हो यदि उसमें सुसंस्कारिता नहीं, भाव संवेदना एवं उच्च विचारण का अभाव है तो विकास समग्र विकास हरगिज नहीं कहला सकता।

               मनुष्य की मूलभूत आवश्यकता बहुत थोड़ी ही है खाने के लिए रोटी, तन ढँकने के लिए कपड़ा और सिर को छत की ही मूलभूत आवश्यकता होती है। उपभोक्तावाद एवं पृथ्वी के रत्नों के दोहन से सम्पन्नता आ भी जायेगी तो उसके साथा विपदा भी आती है। वह विपदा प्रकृति के असंतुलित, अमर्यादित दोहन से उत्पन्न होती है। आज प्रकृति के असमाप्त भण्डार जल एवं प्रदूषण के शिकार हो रहे हैं यह किसकी देन है? आधुनिक विज्ञान के एवं उद्योग के नाम से कल-कारखाने, कम्पनियाँ मानव के सुख-सुविधा के लिए अम्बार लगा रहे फिर भी सुख की चाहत में क्षणिक सुख की प्राप्ति तो होती है, परन्तु स्थाई या आनन्द की अनुभूति विकास के जिन आधारों पर अवलम्बित है वह ऋषिजनित दिव्य ज्ञान भण्डार से निस्सृत होती है। ऋषियों की थाती ज्ञान के उस अकूत भण्डार से परम सुख-शान्ति-सन्तोष का अनुभव हो सकेगा जो आत्मज्ञान की प्राप्ति तक के लिए आधारभूत के रूप में मूल में वही ज्ञान-संपदा ही परिलक्षित होगी।

अमोघ ज्ञान-विज्ञान अर्थात् ऋषि-कृषिजनित तंत्र का पुर्नविकास-विस्तार

               स्थाई आनन्द की अनुभूति कैसे हो? आज गिरते स्वास्थ्य एवं ढेरों बीमारियों के मूल कारण में जाने पर हम पाते हैं कि श्रमशीलता के अभाव के साथ-साथ रासायनिक खाद से उत्पन्न आहार जिसमें उस प्राणतत्त्व का अभाव होता है प्रकृति के सान्न्ध्यि में प्राणसंचरित होकर जीवनशक्ति के उपार्जन एवं विकास में जिनका महत् योगदान है। अर्थात् कृषि विज्ञान के आधार पर आज भी विकसित वैज्ञानिक पद्धति से कृषि उत्पाद हो तो भी कोई शिकायत नहीं, जैविक कृषि को बढ़ावा देकर भूमि को बंजर होने से रोका जा सकता है और जबकि रासायनिक खाद से भूमि बर्बर हो रही है साथ ही अधिक उपज के चक्कर में पीछे से स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है। इसलिए आज सख्त आवश्यकता है जीवन के मूल प्राकृतिक स्रोतों का ही मूलत: प्रयोग करते हुए कृषि अनुसंधान में अपेक्षित परिणाम उपार्जित किया जा सकता है।

               इस दृष्टि से गाँवों के किसानों को जैविक कृषि के लिए प्रेरित-प्रोत्साहित करना अखिल विश्व गायत्री परिवार की रचनात्म्क योजनाओं का मूख्य लक्ष्य है। जैविक खाद से धीरे-धीरे बंजर भूमि उर्वर भूमि में परिवर्तित होगी साथ ही अच्छी उपज होगी और पौष्टिकता सहित प्राणतत्त्वों से अभिपूरित उत्पाद अपनी ही तरह की होगी जिसकी मार्केटिंग भी होड़-सी लगेगी।

               इस क्षेत्र अपेक्षित क्रान्ति की सख्त आवश्यकता है। अत: इस दृष्टि से गो-सेवा, गोपालन, गोवंश का संरक्षण-संवर्धन आज नितांत आवश्यक ही नहीं अनिवार्य हो गया है। गाय-बैल एवं अशक्त बूढ़ी-बंजर गायों को बूचडख़ाने मेे कटने से रोकना और जीवनपर्यंत उनकी सेवा-सुश्रुषा करना भारतीय संस्कृति के कत्र्तव्य के साथ धर्म भी बताया गया है। इस दृष्टि से गौ आधारित स्वावलम्बन प्रधान कुटीर उद्योगों का संचालन भी युग की मांग एवं समय की पुकार है।

               एक गाय अपनी अपने जीवन में जितनी मानव की सेवा लेती है उससे 100 गुना लाभ रिटर्न के रूप में पंचगव्य सहित मरणोपरांत उसके शरीर के प्रत्येक भाग एक जैविक खाद से लेकर उसके अंग अवयवों के आवश्यक उपयोगिता तक की उपादेयता सिद्ध होती है। इसलिए बूढ़ी-बंजर सहित सभी गोधन की रक्षा करना मानव का परम कत्र्तव्य है। इसकी उपेक्षा से ही मनुष्य के सामने आज परिस्थितियाँ विकृत एवं भयावह हैं। बूचढख़ाने में कटने से उनकी आह-चीख-चित्कार सूक्ष्मजगत में ईथर से टकराकर बर्बरता एवं क्रूरता की प्रतिक्रिया मानव में भी हिंसा से लेकर दुव्र्यसनी एवं मनुष्यताविहीन आचरण के उत्तरदायी जीव-जगत पर कुठाराघात पहुँचाने की परिणति है।

्र     निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि यदि गो धन-सम्पदा को संरक्षित-संवर्धित समय रहते नहीं किया गया तो परिस्थितियाँ और भी विकट विषम एवं भयावह होंगी और अंततोगत्वा उसकी शरण में आने पर ही मानवता को त्राण को मिलेगी। जीव-जगत पर्यावरण के एक घटक हैं, मानव विकास-उन्नययन के प्रमुख द्योतक हैं। प्राण वायु के भण्डारण में इनकी भी विशेष भूमिका है जहाँ वृक्षों-पेड़-पौधों से शुद्ध ऑक्सिजन उत्सर्ग होता है वहाँ समष्टि के जीव-जगत नैसर्गिग रूप से आत्मसातकर परिवर्तित-परिवर्धित रूप में प्रकृति को वापिस करती हैं जिससे इकोसिस्टम संतुलित रहती है। अत: आवश्यकता है प्रकृति एवं समष्टि के चराचर-जीव-जगत जो संतुलन का कार्य स्वत: संचालित करती है, उस पर संतुलन की जिम्मेदारी छोडक़र प्रकृति संतुलन में मनुष्य अधिकाधिक सहयोग प्रदान करे और समष्टि के अनुदानो-उपादानों से निहाल सके।

               इस तरह सतयुग की वापसी के ये सारे सरंजाम जो ऋषियुग्म की सत्ता ने जुटा रखी है यथासमय उनके प्रेरित-संप्रेषित विचारों का अनुगमन मानव करे तो नि:संदेह प्रकृति संतुलन से लेकर मनुष्य की मूलभूत आवश्यकता की आपूर्ति सदैव ही होती रहेगी। यह एक वैज्ञानिक सम्मत प्रतिपादन है साथ ही आध्यात्मिकता की दृष्टि से उपकार का प्रतिउपकार अर्थात् क्रिया की प्रतिक्रिया के रूप में प्रकृति के घटनाक्रम दुहराये जाते हैं।

               अखिल विश्व गायत्री परिवार अपने अपने रचनात्मक ट्रस्ट के माध्यम से सामयिक आन्दोलनों को गति देने के लिए पूर्णत: संकल्पित, प्रतिबद्धित है। इस अभियान में जिसकी जितनी बढ़-चढक़र भूमिका होगी वह आज के समय के अनुरूप उतना बड़ा रथी-महारथी स्तर का सत्पुरुषार्थ माना जायेगा जो कभी अस्त्र-शस्त्र में निपुण व्यक्तितों को उक्त रथी-महारथी स्तर की उपमा दी जाती थी। ्र

               आज युग की मांग एवं समय की एक ही पुकार है कि प्रतिभा, पात्रता का निरंतर विकास हो और फिर इनका यथेष्ट सुनियोजन हो। साथ ही वैज्ञानिक पद्धति जो जीवन विकास में सहायक के रूप में प्रादुर्भित हुई है, ज्ञान-विज्ञान को ध्वंस नहीं, वरन् सृजन में उसका संयोजन हो तो निश्चित ही इक्कीसवीं सदी-उज्ज्वल भविष्य साथ ही सतयुग की पुन:वापसी एक सुनिश्चित सत्य-तथ्य के रूप में इसी जीवन में स्पष्ट घटित प्रतीत होगी इसमें कोई अत्युक्ति नहीं।

गायत्री-गो सेवा-साधना संस्थान (योग एवं पारंपरिक चिकित्सा शोध केन्द्र) के उद्देश्य-

               अखिल विश्व गायत्री परिवार शान्तिकुंज हरिद्वार द्वारा चलाये जा रहे रचनात्मक आन्दोलन के विकेन्द्रित विभिन्न प्रकल्पों को मिशन के आदर्श और सिद्धान्तों के आधार पर गति प्रदान करने के साथ-साथ ग्रामतीर्थ योजना के तहत सभी दृष्टि से गाँवों का समग्र विकास प्रमुख उद्देश्य है। मानव में देवत्व का उदय, धरती पर स्वर्ग अवतरण, व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र एवं नये युग का नूतन निर्माण अखिल विश्व गायत्री परिवार विचारक्रान्ति अभियान-युग निर्माण योजना का महत् उद्देश्य है। इस उद्देश्य की आपूर्ति मिशन द्वारा चलाये जा रहे विभिन्न प्रचारात्मक, सुधारात्मक एवं रचनात्मक आन्दोलनों को जन-जन तक पहुँचाने को युग की माँग की आपूर्ति एवं युगधर्म कहा है।

               युग की माँग है प्रतिभा परिष्कार एवं समय की माँग है परिष्कृत प्रतिभा का यथेष्ट सुनियोजन। इस महत् प्रयोजन की आपूर्ति युग निर्माण मिशन-शान्तिकुंज, हरिद्वार द्वारा चलाये जा रहे रनात्मक आन्दोलनों से ही संभव है। मिशन के रचनात्मक आन्दोलनों का उद्देश्य, स्वरूप एवं सदुपयोग वृहद स्तर पर है। इसमें अगणित प्रतिभाएँ, विभूतियाँ व्यावहारिक मूत्र्त रूप प्रदान करने के लिए निरन्तर संलग्र हैं। मिशन अपने रचनात्मक आन्दोलनों, विभिन्न स्वरूपों को विकेन्द्रित करते हुए भौगोलिक, क्षेत्रीय एवं स्वावलम्बन की प्रधानता की दृष्टि से संचालित कर रहा है।

               भारत एक कृषि प्रधान देश होने के कारण यहाँ 75 से 80 प्रतिशत की आबादी अब भी गाँवों में निवास करती है। अत: भारत भू-भाग के प्राय: सभी क्षेत्रों में न्यूनाधिक कृषि कार्य ही सम्पन्न होते हैं। विज्ञान के इस युग में शहरों में बड़े उद्योग-धन्धे संचालित हैं जिसे मोटे और गाँव पतले होते जा रहे हैं। गाँवों से शहर की ओर लोग पलायन भी करते हैं अध्यव्यवसाय एवं रचनात्मकता के अभाव में। अत: हमारा मिशन युगीन समस्याओं के समाधान के लिए प्रतिबद्धित-केन्द्रित है। गाँवों को अपने आप में एक स्वराज्य की उपमा दी गई है। जहाँ गाँवों में छोटे-छोटे कुटीर उद्योग धन्धे संचालित होते थे उनकी जगह आज वैज्ञानिक युग के कारण बड़े उद्योगों ने ली है। अत: गाँवों के समग्र विकास की कल्पना ग्राम तीर्थ के रूप में की गई है। जहाँ गाँवों में कृषि कार्य से लेकर लघु कुटीर उद्योगों द्वारा सामाजिक-सन्तुलन की सुन्दर व्यवस्था बनी थी। जहाँ कृषि है वहीं पशुधन संरक्षित हैं। विकसित विज्ञान की देने उपभोक्तवाद एवं विकासवाद के कारण कृषि भूमि से लेकर पशुधनों में सर्वश्रेष्ठ गोधन-गोपालन एवं संंरक्षण-संवर्धन का कार्य होता था, सिमटकर रह गया। यही नहीं उर्वर भूमि अर्थात् उन्नत कृषि हेतु गोबर खाद की जगह रासायनिक खादों के प्रयोग से भूमि बंजर होने लगी। रासायनिक खाद की उपज में वह प्राण तत्त्व-जीवनीशक्ति में अभाव के कारण शरीरगत, मनोगत असाध्य रोग-शोक में बृद्धि होती चली जा रही है।

               इस प्रकार आधुनिक वैज्ञानिक युग में जहाँ जहाँ उपभोक्ता एवं विकासवाद ने नये-नये कीर्तिमान स्थापित किये हैं, वहाँ, उनकी आधारशिला जर्जर है। विकासवाद का यह मानक ऋषि प्रणीत विधा के अंतर्गत सर्वथा निसिद्धि है जब तक कि उसमें सन्तुलन न हो तब तक। उदाहरणार्थ नि:संदेह कृषि कार्य के निमित्त साधन-उपकरण एवं अधिकाधिक उत्पाद हेतु विज्ञान के द्वारा प्रयास किया गया है, पर वस्तुत: वह विकास का मानदण्ड है ही नहीं, बल्कि उल्टी विपत्ति ही आन पड़ी है। मानव जीवन के लिए रोटी, कपड़ा एवं मकान मूलभूत आवश्यकता है। विकासवाद-भोगवाद एवं संग्रहवाद ने पर्यावरण से लेकर भूमि, पशुधन आदि सभी के लिए समस्याएँ पैदा कर दी है। श्रम की जगह मशीनें आ गईं, इस कारण पशुपालन में खासकर गौओं का जीवन दूभर हो होने लगा। गो बूचडख़ाने में कटने लगे गो तस्करी होने लगी, गो मांस के व्यापार होने होने लगे। जबकि दूध  भारत के इस कृषि प्रधान देश में कभी दूध की नदियाँ बहती थीं। जब गाएँ ही नहीं रहेंगी तो शुद्ध दूध कहाँ से उपलब्ध हो सकेगा। प्राचीन भारत में दूध से लेकर पंचगव्यों से शारीरिक-मानसिक उपचार होते थे। गाय-भैंस के गोबर खाद से कृषि उपज बलिष्ठता से युक्त होती थी, पर्यावरण संतुलित होता था। समय पर वर्षा होती थी, उन्नत कृषि, टिकाउऊ खेती के रूप में स्वस्थता के मानदण्ड होते थे। आज परिस्थितियाँ ठीक विपरीत हो गईं है। अगर ऐसी ही स्थिति बनी रही तो एक दिन धीरे-धीरे सभी का मूल रूप पूर्णत: खत्म हो जायेगा। रोग, शोक, पीड़ा-पतन पराभाव से मानव समाज विकृत होता चला जायेगा। अत: समय रहते युग की समस्याओं का समाधान न निकाला गया तो एक दिन मनुष्यता भी नष्ट हो जायेगी।

               इस प्रकार पीड़ा-पतन निवारण ही मिशन का मुख्य उद्देश्य है जो व्यावहारिक रूप में रचनात्मक आन्दोलनों के द्वारा ही संभव एवं साकार हो सकेगा। अत: इसी दिशा में अखिल विश्व गायत्री परिवार की योजनाएँ विकेन्द्रीकरण के रूप में सुनियोजित संचालित होने जा रही हैं। मिशन के रचनात्मक योजनाओं का कार्यक्षेत्र के रूप में गाँव का समग्र विकास ही समस्त समस्याओं का समाधान है। यही गाँव ग्रामतीर्थ के रूप में विकसित हो सतयुग की वापसी के आधार स्तम्भ होंगे।

               इसीलिए रचनात्मक आन्दोलन हेतु गायत्री परिवार ट्रस्टों के माध्यम से रचनात्मक कार्य को सम्पन्न करने की अभूतपूर्व योजना बनी है जो अपनी तरह की है और युगीन समस्याओं के सम्पूर्ण समाधान के लिए हर दृष्टि से ट्रस्ट समय के साथ सक्षम होते जायेंगे।

               इसी क्रम में गायत्री परिवार रचनात्मक ट्रस्ट बैसपाली-रायगढ़ भी समस्त रचनात्मक आन्दोलनों को मिशन के आदर्शों-सिद्धान्तों के आधार पर अपनी तरह से गति प्रदान करने हेतु संकल्पित-प्रतिबद्धित है। यही नहीं भौगोलिक, क्षेत्रीय, प्रान्तीय स्तर पर गावों के समग्र विकास एवं ग्राम तीर्थ की अवधारणा को मूत्र्त रूप प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध है। मिशन की धुरी साधना आन्दोलन के जन जागृति से लेकर गो-सेवा, गौ संरक्षण-संवर्धन, रासायनिक खादमुक्त उन्नत कृषि उपज के शिक्षण-प्रशिक्षण के अलावा स्वावलम्बन प्रधान लघु कुटीर उद्योंगों के भी शिक्षण-प्रशिक्षण की विशाल योजना है। साथ ही मिशन के स्वास्थ्य आन्दोलन तहत् योग एवं परंपरागत चिकित्सा हेतु शोध केन्द्र के रूप में विकास-विस्तार देने की भावी योजनाएँ जो यथासमय उभरकर स्वरूप लेंगी।

               योग एक जीवन शैली का नाम है। इसके माध्यम से जीवनशैली एवं दृष्टिकोण में आमूल परिवर्तन की उच्च संकल्पना अभिप्रेरित है। इसके दोनों ही रूपों स्थूलपरक योगासनों से लेकर पतंजलि अष्टांग योग की साधना समाहित है। परंपरागत चिकित्सा से आशय विभिन्न पारंपरिक चिकित्सा जैसे प्राकृतिक चिकित्सा, आयुर्वेदिक चिकित्सा, पंच तत्त्व चिकित्सा-सूर्य चिकित्सा, जल चिकित्सा, मिट्टी चिकित्सा, भाव चिकित्सा, एक्यूप्रेशर चिकित्सा, गो मूत्र एवं गोमय द्वारा चिकित्सादि पारंपरिक चिकित्सा के माध्यम से अक्षुण स्वास्थ्य प्राप्ति की दिशा में एक सार्थक एवं शोधपरक कार्य की विस्तृत योजना है।

               इस प्रकार एक जगह पर सामयिक रचनात्मक प्रकल्पों को गति देने के उद्देश्य से अभिप्रेरित इस ट्रस्ट की मूल उद्देश्य है। गायत्री परिवार ट्रस्ट बैसपाली रायगढ़ द्वारा संचालित इस ट्रस्ट की पहिचान हेतु इसका नामकरण गायत्री-गो सेवा-साधना संस्थान योग एवं पारंपरिक चिकित्सा शोध केन्द्र रखा है। इस प्रकार यह संस्थान नवयुग के नूतन निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाये और ग्राम तीर्थ योजना के माध्यम से उज्ज्वल भविष्य की दिशा में निरन्तर सत्पुषार्थ का संपादन होता रहे और इसमें समाज के सभी वर्गों का महत् पुरुषार्थ समयदान-अंशदान के रूप में नियोजित हो। सभी के समूह मन का उत्कृष्ट प्रयास प्रतिभा के निखार के रूप में उभरे, ऐसी सद्पे्ररणाओं, दूरदर्शिताभरी महान् योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए यह संस्थान संकल्पित है। 

               इसी उद्देश्य की आपूर्ति हेतु सेवा-साधना पुरषार्थ का छोटा रूप कछुए की चाल के रूप में उभर रहा है और जैसे-जैसे संगठन बनता चला जायेगा उसमें मजबूती आयेगी और निश्चित एक दिन समाज का हर वर्ग लाभान्वित होगा। क्षेत्रीय स्तर पर बीज में छिपे न दिख पडऩे वाले वृक्ष की तरह यह अंकुरित बीज पौधे से पेड़ बनता हुआ प्रान्तीय स्तर पर विशाल रचनात्मक योजना का केन्द्र बनेगा, ऐसी आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है।

               यह कार्य कैसे संभव होगा, यह जिज्ञासा स्वाभाविक है, क्योंकि रचनात्मकता के लिए कार्य योजना को साकार रूप प्रदान के लिए उतनी तादाद में कार्यकत्र्ताओं की आवश्यकता है। इसी के लिए गायत्री साधक हर गाँव में तैयार करने का लक्ष्य है और गायत्री परिवार के एक मजबूत संगठन जो सेवा-साधना की धुरि पर केन्द्रित हो उज्ज्वल भविष्य के लिए नेक कदम बढ़ाते चलने का है। क्षेत्रीय एवं ग्रामीण हरेक साधक जो सेवा-साधनापरायण है इस संस्थान में आकर 9 दिन की गायत्री साधना सम्पन्न करे और गोमाता की सेवा करे, यहाँ शुद्ध-सात्विक आहार-विहार की योजना है जिसमें रासायनिकखाद मुक्त आहार सुलभ कराने की योजना है जो औषधि का काम करे। योग जो एक जीवन शैली का नाम है आदर्श और नियमित दिनचर्या के माध्यम से साथ ही शरीरगत आधि-व्याधि से लेकर असाध्य रोगों तक के निवारण के लिए परंपरागत चिकित्सा अर्थात् समस्त पारंपरिक-प्राकृतिक चिकित्सा के माध्यम से पूर्ण शारीरिक-मानसिक स्वस्थता का प्रयास किया जायेगा।

               इस महत् कार्य के लिए समय-समय पर नि:शुल्क विभिन्न स्वास्थ्य शिविरों का यहाँ से संचालन होगा। स्वस्थता के मानदण्ड डाटा संकलन पर शोध कार्य होगा। इस प्रकार स्वस्थ शरीर-स्वच्छ मन एवं सभ्य समाज की दिशा में क्रमश: नेक कदम बढ़ाते चलने जन-जन को लाभ पहुँचाने की विस्तृत योजना है।

               यहाँ निर्मित आवासीय साधना भवन एवं प्रशिक्षण हॉल में स्वावलम्बन प्रधान प्रशिक्षण से लेकर जैविक कृषि उसके मेरुदण्ड गो एवं गोशाला आधारित ऋषि-कृषि प्रणीत योजनाओं लेकर गोमय औयौगि के निवारण हर गाँव में  साथ-साथ साकार रूप साथ ही शिक्षण-प्रशिक्षणपरक रचना इिस संबंध में पूज्य गरुवर का कथन है— ‘‘आने वाले समय में शहरों का मुटापा हलका होगा और दुबले गाँव, कस्बे बनकर मजबूत दुष्टिगोचर होने लगेंगे। सरकारी बैंक अभी तो बड़े उद्योगों के लिए बउ़ही सुविधाएँ देने हैं, पर अगले दिनों यह भी संभव न होगा। आने वाले दिनों में कुटीर-उद्योग ही प्रमुख होंगे। ये गाँवों-कस्बों में चलेंगे और सहकारी समिति स्तर पर उनका ढाँचा खड़ा होगा।’’- अखण्ड-ज्योति, जुलाई 1984.

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