समय जरा भी बर्बाद न कीजिए (भाग १)

समय को सम्पत्ति कहा गया है। यह गलत भी नहीं है। समय का सदुपयोग करके ही लोग धनवान बनते हैं, विद्वान तथा कर्तृत्ववान बनते हैं। कभी किसी प्रकार भी एक क्षण खराब करना अपनी बड़ी हानि करना है।
जिस प्रकार समय का सदुपयोग लाभकारी होता है उसी प्रकार समय का दुरुपयोग हानिकारक होता है। खाली हाथ बैठा नहीं जा सकता। मनुष्य यदि कोई शारीरिक कार्य न करता हो तो उसके मानसिक तरंग दौड़ रहे होंगे। जिन विचारों के पीछे उद्देश्य नहीं होता, जिनके उपयोग की कोई योजना नहीं होती वे मन मस्तिष्क को विकृत कर देते हैं। फिजूल की कल्पनायें मन में इच्छाओं का जागरण कर देती हैं, ऐसी इच्छायें जिनका कोई स्पष्ट स्वरूप नहीं होता, यों ही मन में उमड़-घुमड़ कर मनुष्य को इधर-उधर लिए घूमती हैं। ऐसी इच्छाओं में काम-वितर्क जैसी विकृत इच्छायें ही अधिक होती हैं।

चौबीस घण्टों में ज्यादा से ज्यादा सामान्य लोग आठ-दस घण्टे ही काम किया करते हैं। बाकी का समय उनके पास बेकार ही रहता है। उस बेकार समय में आठ घण्टे के लगभग नहाने-धोने, सोने में निकल जाते हैं, तब भी उसके पास चार-छह घण्टे तक का समय बिल्कुल बेकार रहता है। इस समय में या तो लोग इधर-उधर मारे-मारे घूमते हैं या यार-दोस्तों के साथ गप मारते, ताश-चौपड़ या शतरंज खेलते हैं। बहुत लोग इसी समय में सिनेमा या स्वांग देखने  जाते हैं या घर में ही बैठ कर पत्नी से मुंह-जोरी या बच्चों पर शासन चलाते हैं, जिससे गृह-कलह होती है। घर का वातावरण खराब होता, बच्चों की हंसी-खुशी मिट जाती है। तात्पर्य यह है कि अपने खाली समय में लोग कुछ ऐसा ही काम किया करते हैं जिसका कोई लाभ तो होता ही नहीं उल्टे कोई हानि या बुराई ही पैदा होती है।

यदि मनुष्य शेष समय का सार्थक सदुपयोग करना सीख जाए तो बहुत-सी बुराइयों से बच जाय और कुछ लाभ भी उठा सकता है। समय का सदुपयोग ही उन्नति का मूल-मन्त्र है। स्त्रियों के पास तो पुरुषों से भी अधिक फालतू समय बचता है। भोजन बनाने खिलाने के उपरान्त उनके पास कोई काम नहीं रहता। काम से निपट कर या तो पड़ी-पड़ी अलसाया करती हैं, या सोया करती हैं अथवा दूसरी स्त्रियों के साथ बैठ कर बातें करेंगी। निन्दा और आलोचना-प्रत्यालोचना का प्रसंग चलायेंगी और कोई बहाना मिल जाने से लड़ाई-झगड़ा करेंगी। फालतू रहना झगड़े-फसाद को आमन्त्रित करना है। यदि पढ़ी-लिखी हुई तो मासिक पत्र-पत्रिकायें और उपन्यास वगैरह पढ़ती रहेंगी सो भी निरुद्देश्य। न ज्ञान के लिए, न स्वास्थ्य, मनोरंजन के लिए, केवल अपना यह फालतू समय काटने के लिये।

…. क्रमशः जारी✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

Leave a Reply